हमारे बारे में
|| हमारा उद्देश्य ||
ऋषिवर दयानंद स्वयं कथित जीवन चरित्र में कहते हैं “आर्यधर्म की उन्नति के लिए मुझ जैसे बहुत से उपदेशक आपके देश में होने चाहिए”| तथा ऋषि अपने विभिन्न कालजयी ग्रंथों में इसके लिए उपाय भी बतलाते हैं, तदनुसार ही हम प्रयास कर रहे हैं, एवं भविष्य में और अधिक दृढ़ता से करना भी चाहते हैं| इसी उद्देश्य से हम आधुनिक शिक्षा से शिक्षित युवाओं के निमित्त भी “लघु-गुरुकुल” योजना के अंतर्गत समय-समय पर कक्षाओं, कार्यशालाओं, संगोष्ठी का आयोजन भी करते रहते हैं| सांगोपांगवेद विद्या से भलीभांति परिचित “आर्य” गंभीर अध्येता, वैदिक-विद्वान, उपदेशक तथा आचार्य बनाना ही हमारा उद्देश्य है|
सांगोपांगवेद विद्या का अर्थ-
- अंग – शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, कल्प, ज्योतिष, छंद|
- उपांग – मीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य, वेदांत|
- उपवेद – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थवेद (शिल्प शास्त्र)|
- ब्राह्मण – ऐतरेय, शतपथ, साम और गोपथ
|| भूयोविद्य: प्रशस्यो भवति ||
|। वर्तमान स्थिति ।।
।। बालाकों के प्रवेश का नियम।।
|| मान्यता ||
गुरुकुल का पाठ्यक्रम – (महर्षि सान्दीपनि राष्ट्मीय वेद संस्कुत शिक्षा बोर्ड. Rashtriya Veda Sanskrit Shiksha Board Maharshi Sandipani “महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान” (शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार का स्वायत्त संस्थान) उज्जैन से मान्यता प्राप्त है 7 वर्ष तक अनवरत अध्ययन करने वाले प्रत्येक छात्र को ₹1000 मासिक छात्रवृत्ति मिलती है, जो कि अध्ययन के उपरांत प्रदान की जाती है, विद्वान बनने के उपरांत संस्कृत क्षेत्र के युवाओं को मिलने वाली आजीविका (नौकरी आदि) का लाभ यहां के छात्र ले सकते हैं, तथा 21 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर “महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान” से सम्बद्ध वेद पाठशाला में योग्य मानदेय पर वेदाध्यापक भी नियुक्त हो सकते हैं, वर्तमान में हमारे गुरुकुल से वेद पढ़ने के उपरांत दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के गुरुकुल में कई अध्यापक नियुक्त हो चुके हैं।