हमारे बारे में

|| हमारा उद्देश्य ||

ऋषिवर दयानंद स्वयं कथित जीवन चरित्र में कहते हैं “आर्यधर्म की उन्नति के लिए मुझ जैसे बहुत से उपदेशक आपके देश में होने चाहिए”| तथा ऋषि अपने विभिन्न कालजयी ग्रंथों में इसके लिए उपाय भी बतलाते हैं, तदनुसार ही हम प्रयास कर रहे हैं, एवं भविष्य में और अधिक दृढ़ता से करना भी चाहते हैं| इसी उद्देश्य से हम आधुनिक शिक्षा से शिक्षित युवाओं के निमित्त भी “लघु-गुरुकुल” योजना के अंतर्गत समय-समय पर कक्षाओं, कार्यशालाओं, संगोष्ठी का आयोजन भी करते रहते हैं| सांगोपांगवेद विद्या से भलीभांति परिचित “आर्य” गंभीर अध्येता, वैदिक-विद्वान, उपदेशक तथा आचार्य बनाना ही हमारा उद्देश्य है|

सांगोपांगवेद विद्या का अर्थ- 

  • अंग – शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, कल्प, ज्योतिष, छंद|
  • उपांग – मीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य, वेदांत| 
  • उपवेद – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थवेद (शिल्प शास्त्र)|
  • ब्राह्मण – ऐतरेय, शतपथ, साम और गोपथ

|| भूयोविद्य: प्रशस्यो भवति ||

वेद विद्या की महिमा का वर्णन करते हुए निरुक्त में आचार्य यास्क लिखते हैं कि- “ज्ञानियों में वही श्रेष्ठ प्रशंसा के योग्य होता है जो अत्याधिक विद्या संपन्न हो, अर्थात् सांगोपांगवेद विद्या को जानने वाला हो”| ऋषिवर दयानंद निर्देशित इसी श्रेष्ठतम शास्त्रीय उद्देश्य को लक्ष्य में रखते हुए 9 फरवरी सन 2003 से सांगोपांगवेद विद्यापीठ “MDVT गुरुकुल” को दिल्ली के ग्रामीण परिवेश से युक्त सुंदर सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में संचालित किया जा रहा है| टटेसर – जौंती सहित समूचे क्षेत्र के प्रबुद्ध आर्य महाशय लोगों ने अंग्रेजों की पराधीनता के अंधकारमय कालखंड में ही ऋषि दयानंद प्रदत्त दृष्टि से वेदविद्या की महत्ता को समझकर सन् 1941 ई. में प्रथम आर्य समाज और शीघ्र ही क्षेत्र के अन्यतम शैक्षणिक प्रकाश स्तंभ के रूप में इस गुरुकुल की स्थापना अत्यंत पुरुषार्थ युक्त होकर की थी| विश्व धरोहर (वर्ल्ड हेरिटेज) की सुरक्षा और विकास के लिए बनी विश्व की एकमात्र सर्वोच्च संस्था यूनेस्को द्वारा जिस “वेदविद्या” के महत्व को 21वीं सदी में स्वीकार करना पड़ा हो, और कहना पड़ा हो कि- “वेद” संपूर्ण विश्व की धरोहर हैं, उस “वेदविद्या” के महत्व को समझ कर किया गया यह उपक्रम भविष्य में अवश्यमेव प्रकाशित होगा!

|। वर्तमान स्थिति ।।

वर्तमान समय में जहां एक ओर समाज का साधन संपन्न वर्ग धन के सीमित उद्देश्य के वशीभूत होकर पाश्चात्य चकाचौंध से आत्ममुग्ध होकर शिक्षा के नाम पर शोषण का शिकार बनता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सभी प्रकार के भेदभाव से रहित हमारी यह गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली सभी प्रकार से संघर्ष करती हुई विश्व में वेदविद्या की सुरक्षा के लिए संकल्पित है। संप्रति पचास से अधिक ब्रह्मचारी यहां पर ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, एवं अथर्ववेद का अध्ययन स्वर सहित अविच्छिन्न गुरुशिष्य परंपरा से कर रहे हैं। इनके साथ ही पाणिनीय शिक्षा, अष्टाध्यायी, धातुपाठ, निघंटु, संस्कृत-व्याकरण सहित गणित, सा.विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषयों के अध्ययन की समुचित व्यवस्था है।

।। बालाकों के प्रवेश का नियम।।

बालकों का प्रवेश अप्रैल से जुलाई के माह तक होता है। आयु आठ वर्ष से बारह वर्ष के भीतर, योग्यता- कक्षा पांच उत्तीर्ण। बालक को स्वास्थ्य संस्कार युक्त एवं बुद्धिमान होना चाहिए। प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने पर ही प्रवेश लिया जाता है।

|| मान्यता ||

गुरुकुल का पाठ्यक्रम – (महर्षि सान्दीपनि राष्ट्मीय वेद संस्कुत शिक्षा बोर्ड. Rashtriya Veda Sanskrit Shiksha Board Maharshi Sandipani “महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान” (शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार का स्वायत्त संस्थान) उज्जैन से मान्यता प्राप्त है 7 वर्ष तक अनवरत अध्ययन करने वाले प्रत्येक छात्र को ₹1000 मासिक छात्रवृत्ति मिलती है, जो कि अध्ययन के उपरांत प्रदान की जाती है, विद्वान बनने के उपरांत संस्कृत क्षेत्र के युवाओं को मिलने वाली आजीविका (नौकरी आदि) का लाभ यहां के छात्र ले सकते हैं, तथा 21 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर “महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान” से सम्बद्ध वेद पाठशाला में योग्य मानदेय पर वेदाध्यापक भी नियुक्त हो सकते हैं, वर्तमान में हमारे गुरुकुल से वेद पढ़ने के उपरांत दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के गुरुकुल में कई अध्यापक नियुक्त हो चुके हैं।